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पाँच यौन संक्रमित रोग जिनकी जानकारी आपको होनी चाहिए

August 4, 2016 | by ashish963@gmail.com

विश्वभर में यौन संक्रमित रोगों (एसटीडी) में लगातार वृद्धि पाई गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसका मुख्य कारण है जागरूकता व सावधानी की कमी जो युवाओं में बढ़ रही है और वयस्कों में व्यापक है। ये रोग संक्रामक होते हैं जो एक संक्रमित व्यक्ति से प्रत्यक्ष मौखिक, गुदा व योनिक यौन संबंधों से फैलते हैं। यहाँ पाँच यौन संचालित रोगों का संक्षिप्त वर्णन है जिनकी जानकारी आपको होनी चाहिए।

जननिक दाद

यह संक्रमण हर्पीज़ सिंप्लेक्स विषाणु (एचएसवी) से होता है जो दो रूप में पाए जाते हैं, प्रकार १ और प्रकार २। दुसरे प्रकार के विषाणु से ही अक्सर जननिक दाद होता है जिसके लक्षण हैं बहुत पीड़ा देनेवाले घाव और फुन्सी। ये अधिकांश गुदा के चारों ओर, जननिक परिवेश में तथा जांघों और कूल्हे पर पाए जाते हैं। ये खुजलीदार हो सकते हैं। इसके लक्षण अक्सर मुंहासे और त्वचा में जलन जैसे अभिव्यक्त होते हैं।

प्रमेह

यह संक्रमण नीसेरिया गोनोरिया नामक जीवाणु से होता है जो शरीर के नम इलाकों में पनपते हैं जैसे कि प्रजनन प्रणाली, खाद्य नली या उत्सर्जन नली। प्रमेह संक्रमित व्यक्ति के गुदा, योनिक और मौखिक यौन संबंध से फैलता है। चूंकि ये जीवाणु आंव झिल्लियों में पनपते हैं, अतः ये भावी माँ से उसके अजन्मे शिशु को हो सकता है। इस रोग के आम लक्षण हैं पीड़ाजनक मूत्र होना, योनि अथवा लिंग से कष्टदाई स्राव और अंडकोष में दर्द व सूजन।

एचआईवी तथा एड्स

मानव प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु या एचआईवी मानव शरीर के प्रतिरक्षक कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं और उन्हें अगले दस सालों के औसत काल तक निष्क्रिय बना देते हैं, जिससे शरीर की बीमारियों से प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है। एचआईवी की इस अग्रसर अवस्था को एड्स या उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण कहते हैं। एचआईवी से ग्रस्त मनुष्य यह संक्रमण दूसरों को जैविक द्रव द्वारा फैला सकता है जैसे शुक्राणु, योनिक स्राव, रक्त और वीर्य का स्त्राव। बिना विसंक्रमित किये सुई का अंतः क्षेपण व गोदने के लिए इस्तेमाल, या संक्रमित व्यक्ति से आरक्षित यौन संबंध से यह विषाणु फैलते हैं। यह संक्रमण एक भावी माँ से उसके अजन्मे शिशु को स्तनपान द्वारा भी हो सकता है।

मानव पैपिलोमा विषाणु

मानव पैपिलोमा विषाणु (एचपीवी) बहुत ही व्यापक हैं और अधिकतर स्वस्थ मनुष्य के प्रतिरक्षी तंत्र द्वारा जीत लिए जाते हैं। यह संक्रमित व्यक्ति के त्वचा के स्पर्श अथवा गुदा, योनिक और मौखिक यौन संबंध से फैलता है। यह कोई लक्षण दिखाए ऐसा आवश्यक तो नहीं, परन्तु यदि प्रतिरक्षी तंत्र इसे न रोक पाए तो यह रोग मस्सा या फूलगोभी के आकार का कोंडिलोमाटा नामक गाँठ के रूप में उभरता है।

क्लैमिडिया

यह संक्रमण या जीवाणु से होता है जो मलाशय और जननांग को प्रभावित करते हैं। अधिकांश मामलों में यह संक्रमण पुरुषों में कोई लक्षण नहीं जताता और कुछ लक्षणों जैसे अंडाशय के सूजन, लिंग पर खुजली और पीड़ादायी पेशाब से खोज नहीं जा सकता। परन्तु स्त्रीयों में यह व्यापक है जिसके लक्षण हैं – संभोग या ऋतुस्राव में पीड़ा, ऋतुस्रावों के बीच या संभोग के बाद रक्तस्त्राव, मूत्र विसर्जन के समय जलन महसूस होना इत्यादि।

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